महाराष्ट्र और हरियाणा के बुरे अनुभव के बाद बीजेपी झारखंड को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। दोनों राज्यों में राष्ट्रवाद का मुद्दा तकरीबन रिजेक्ट हो जाने के चलते बीजेपी चुनाव जिताने वाले कुछ और कारगर उपायों को तलाश रही है। सत्ता विरोधी फैक्टर झारखंड में भी बीजेपी की रघुवर दास सरकार पर वैसे ही लागू होता है, जैसे महाराष्ट्र और हरियाणा की हालत रही। क्योंकि राजग की मजबूती कायम रखने के लिहाज से भी झारखंड विधानसभा का चुनाव बीजेपी के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। पार्टी अगर इस सूबे में अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई तो राजग के कुनबे में खटपट बढने की संभावना है। सहयोगी दल भाजपा पर दबाव बढ़ाने का मौका नहीं गंवाएंगे। आम चुनाव 2019 चुनाव के बाद राजग से शिवसेना के बाद आजसू की भी विदाई हो चुकी है। जबकि अकाली दल और लोक जनशक्ति पार्टी से भाजपा की खटास बढ़ी है। बिहार में तो जदयू और भाजपा का रिश्ता कभी तल्ख तो कभी नर्म वाला रहा है। ऐसे में झारखंड की अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार घोषित होने के बाद बीजेपी चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है।
झारखंड के सुब्रमण्यम स्वामी की नाराजगी रघुवर दास को अर्जुन मुंडा न बना दे